नासिक से मोहन देसाई लिखते हैं कि उनके गांव में जिस वक्त हिन्दू नए साल का जश्न मनाया जा रहा था उसी वक्त एक दुकान पर एक फौजी अपनी ताकत दिखा रहा था। हालांकि वर्दी का रौब नयी बात नहीं है। लेकिन पुलिस के बाद सेना के लोग भी इस तरह की घटनाओं से जुड़ने लगे है। खास बात ये है कि झगड़ा सिर्फ इस बात को लेकर हुआ था कि चाय वाले ने पहले उस फौजी को चाय क्यों नहीं दी।
कुछ ऐसा ही वाकया नए साल पर कोलकाता में हुआ था । जिसकी गूंज कई दिनों तक सुनाई देती रही। रविवार रात पार्क स्ट्रीट पर नये साल की अगवानी के लिए भारी भीड़ जुटी थी। इस जमघट में मद्रास रेजीमेंट के कई अधिकारी भी मौजूद थे। लेकिन न सिर्फ कुछ अफसर जश्न के जोश में होश खो बैठे बल्कि पुलिस के साथ भी हाथा पाई की। वो हाथा पाई किस कदर थी इसका अंदाजा पार्क स्ट्रीट थाने को देख कर लगाया जा सकता था। जिन लोगों ने अपने टेलीविजन पर इस रिपोर्ट को देखा उनके लिए वाकई ये यकीन करना मुश्किल था कि सेना और पुलिस भी एक दूसरे के खून के प्यासे हो सकते हैं।
रिपोर्ट की पहली लाइन ही कुछ यूं थी -"जरा इस नजारे को देखिए,ये कमरा किसी के घर का नहीं बल्कि कोलकाता के पार्क स्ट्रीट थाने का है,जहां हमारे आपके रखवाले रहते हैं और इसका ये हाल किया है हमारे देश के रखवालों ने। पुलिस नए साल के जश्न के दौरान जब फौज के दो अफसरों लेफ्टिनेंट कर्नल चंद्र प्रताप सिंह और कैप्टन महेश को रात के करीब एक बजे पार्क स्ट्रीट इलाके में लड़कियों से छेड़छाड के मामले में थाने लाई तो वहां बवाल मच गया। दरअसल जैसे ही इन अफसरों को थाने लाए जाने की खबर फैली कुछ ही मिनटो में सेना के दर्जनभर से ज्यादा जवानों ने थाने में धावा बोल दिया। न सिर्फ वो आरोपी अफसरों को छुड़ा ले गए बल्कि जम कर तोड़ फोड़ भी की।" हैरत की बात ये है कि फौज के दोनों अफसरों के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किए जाने के बावजूद कोलकाता में सेना का कोई अफसर मुंह खोलने को तैयार नहीं था। सेना के जिन दर्जनभर से ज्यादा जवानों ने थाने में तोड़ फोड़ की उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई या सेना क्या कर रही है इस पर भी किसी के पास कोई जवाब नहीं था। नतीजतन पुलिस को इस मामले की शिक़ायत प्रधानमंत्री कार्यालय और सेना मुख्यालय से करनी पड़ी। तब कही जा कर सेना के प्रवक्ता ने कर्नल एस के सखुजा ने कहां कि जांच के आदेश दे दिए गए हैं ।सेना और पुलिस के बीच लड़ाई कोई नई बात नहीं है। लेकिन सेना का कोई अफसर लड़कियों को छेड़ते सरेआम पकड़ा जाए ये बात कुछ अजीब जरुर लगती है। शराब के नशे में शायद वो ये भी भूल गए कि उनकी हरकत के बाद किसी को उनके परिचय की जरुरत नहीं पड़ेगी बल्कि उनकी वर्दी खुद सब कुछ बयां कर देगी। हुआ भी यहीं।
पुलिस ने वर्दी की लाज का वास्ता देते हुए हुए पहले तो लेफ्टिनेंट कर्नल साहब औऱ कैप्टन महाशय को समझाने की कोशिश की, लेकिन बात जब नहीं बनी तो उन्हें थाने ले जाना ही बेहतर समझा। लेकिन उसे क्या पता था कि उन्हें थाना पहुंचाना इतना मंहगा पड़ जाएगा। लेकिन सेना के बिगडैंल अफसर शायद ये भूल गए कि अगर वक्त रहते पुलिस उन्हें थाने नहीं ले जाती तो सही कसर वहां मौजूद आम जनता कर देती। जो ऐसे मौको पर मनचलों पर हाथ साफ करना अपना कर्तव्य समझ लेती है। फिर भीड़ में किस ने किस अफसर की कितनी धुनाई की इसका लेखा जोखा कौन याद रखता । शायद पार्क स्ट्रीट से पुलिस उन्हें थाने यही समझाने ले गई थी।
रिपोर्ट की पहली लाइन ही कुछ यूं थी -"जरा इस नजारे को देखिए,ये कमरा किसी के घर का नहीं बल्कि कोलकाता के पार्क स्ट्रीट थाने का है,जहां हमारे आपके रखवाले रहते हैं और इसका ये हाल किया है हमारे देश के रखवालों ने। पुलिस नए साल के जश्न के दौरान जब फौज के दो अफसरों लेफ्टिनेंट कर्नल चंद्र प्रताप सिंह और कैप्टन महेश को रात के करीब एक बजे पार्क स्ट्रीट इलाके में लड़कियों से छेड़छाड के मामले में थाने लाई तो वहां बवाल मच गया। दरअसल जैसे ही इन अफसरों को थाने लाए जाने की खबर फैली कुछ ही मिनटो में सेना के दर्जनभर से ज्यादा जवानों ने थाने में धावा बोल दिया। न सिर्फ वो आरोपी अफसरों को छुड़ा ले गए बल्कि जम कर तोड़ फोड़ भी की।" हैरत की बात ये है कि फौज के दोनों अफसरों के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किए जाने के बावजूद कोलकाता में सेना का कोई अफसर मुंह खोलने को तैयार नहीं था। सेना के जिन दर्जनभर से ज्यादा जवानों ने थाने में तोड़ फोड़ की उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई या सेना क्या कर रही है इस पर भी किसी के पास कोई जवाब नहीं था। नतीजतन पुलिस को इस मामले की शिक़ायत प्रधानमंत्री कार्यालय और सेना मुख्यालय से करनी पड़ी। तब कही जा कर सेना के प्रवक्ता ने कर्नल एस के सखुजा ने कहां कि जांच के आदेश दे दिए गए हैं ।सेना और पुलिस के बीच लड़ाई कोई नई बात नहीं है। लेकिन सेना का कोई अफसर लड़कियों को छेड़ते सरेआम पकड़ा जाए ये बात कुछ अजीब जरुर लगती है। शराब के नशे में शायद वो ये भी भूल गए कि उनकी हरकत के बाद किसी को उनके परिचय की जरुरत नहीं पड़ेगी बल्कि उनकी वर्दी खुद सब कुछ बयां कर देगी। हुआ भी यहीं।
पुलिस ने वर्दी की लाज का वास्ता देते हुए हुए पहले तो लेफ्टिनेंट कर्नल साहब औऱ कैप्टन महाशय को समझाने की कोशिश की, लेकिन बात जब नहीं बनी तो उन्हें थाने ले जाना ही बेहतर समझा। लेकिन उसे क्या पता था कि उन्हें थाना पहुंचाना इतना मंहगा पड़ जाएगा। लेकिन सेना के बिगडैंल अफसर शायद ये भूल गए कि अगर वक्त रहते पुलिस उन्हें थाने नहीं ले जाती तो सही कसर वहां मौजूद आम जनता कर देती। जो ऐसे मौको पर मनचलों पर हाथ साफ करना अपना कर्तव्य समझ लेती है। फिर भीड़ में किस ने किस अफसर की कितनी धुनाई की इसका लेखा जोखा कौन याद रखता । शायद पार्क स्ट्रीट से पुलिस उन्हें थाने यही समझाने ले गई थी।
2 comments:
कोलकाता की घटना का जिक्र आधी-अधूरी और अपुष्ट सूचना तथा अज्ञान पर आधारित है .छेड़छाड की किसी घटना के प्रमाण नहीं मिले. यह एक पंच-सितारा होटल के सुरक्षा कर्मियों और पार्कस्ट्रीट पुलिस के हफ़्ता-आधारित संबंधों के चलते पुलिस की हाई-हैंडेडनेस का मामला था .
मुझे नहीं मालूम कोलकाता में नए साल की घटना का सच क्या था। लेकिन कुछ खबरियां चैनल पर खबर जरुर देखी थी। पुलिस का डंडा गाहे बगाहे बेकसूरो पर जरुर चलता है। जो कतई गलत नहीं है। लेकिन इस बात पर शायद बहस की जरुरत नहीं है। क्योंकि वर्दी के बेजा इस्तेमाल पर पहले भी बहस काफी हो चुकी है। नतीजा कुछ नहीं निकला।
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