विकास मिश्र इस ब्लॉग के पुराने साथी है। आजतक से जुड़ने के पहले कई पत्र पत्रिकाओं का संपादन कर चुके हैं। खास बात ये है कि खबर के साथ साथ व्यंग पर भी इनकी अच्छी पकड़ है। इस सप्ताह भी उन्होंने अपने व्यंग के जरिए अपनी बात रखने की कोशिश की है।
रविवार का दिन। सुर्तीलाल अचानक घर पर धमक गए। दरवाजा खोला। घर में सोफे पर आसन जमाकर बैठ गए। बोले-का हो पंडित सुना है बेटे की तबीयत नासाज है। क्या हुआ है उसे। चार दिन से वायरल फीवर हुआ है। कमजोरी भी काफी है। बड़े प्राइवेट अस्पताल में दिखाया था। हजारों का चूना लग गया, लेकिन तबीयत में कुछ खास सुधार नहीं है। मैंने सुर्तीलाल को बताया। सुर्तीलाल भड़क गए। बोले-तुम भी कमाल करते हो पंडित। फंस गए ना प्राइवेट अस्पताल के चंगुल में। बच्चे का एक रोग ठीक करेंगे। चार नए रोग गिफ्ट में पकड़ा देंगे। अरे इसे तुलसी मिर्च का काढ़ा पिलाओ। कहो खूब खाए पिए, ठीक हो जायेगा। अगर मेडिकल मेनिया में फंसे तो फंसते ही चले जाओगे। ये मेडिकल मेनिया क्या होता है। मैंने पूछा। हालांकि मैं ये नहीं जानता था कि सुर्तीलाल कबसे ऐसे ही किसी सवाल का इंतजार कर रहे थे। उनका पूरा ज्ञान बाहर आने के लिए फड़फड़ा उठा। पान की एक गिलौरी मुंह में दाबा और सुपाड़ी से थोड़ा चूना उठाकर मुंह में दे मारा। फिर बोले-मेडिकल मेनिया आज के दौर की सबसे बड़ी बीमारी है। ये उनको होती है, जिनके पास चार पैसे आ जाते हैं। हर छींक-जुकाम पर अस्पताल भाग जाते हैं। हर हफ्ते कोई ना कोई जांच करवाते हैं। अगर नौकरी में हैं और मेडीक्लेम पॉलिसी ले रखी है तो अस्पतालों के चक्कर काटना दिनचर्या में शामिल हो जाता है। अस्पताल तो पलकें बिछाए ऐसे ही शिकार की तलाश में रहते हैं। यहां न सिर्फ रोगों का इलाज होता है, बल्कि इलाज कराने पर नए रोग गिफ्ट में भी मिलते हैं। अस्पतालों का मोटा बिल बनता रहे, इसके अलावा उन्हें किसी और चीज से भला क्या मतलब। मैंने टोका- तो क्या सभी अस्पताल सिर्फ पैसा कमाने के लिए बने हैं। सुर्तीलाल बोले- सौ फीसदी पंडित सौ फीसदी। प्राइवेट अस्पताल हैं, बिना पैसे के तो इसमें घुसने भी नहीं पाओगे। हां सरकारी अस्पतालों में लगभग मुफ्त इलाज होता है। लेकिन उसमें भी पेंच हैं। सरकारी डॉक्टर एक तो अस्पताल आते नहीं। अगर भूले भटके अस्पताल में पहुंच गए तो मरीज को अपनी प्राइवेट क्लीनिक या अस्पताल में बुलाते हैं। फिर लगाते रहो चक्कर। जो उनके प्राइवेट क्लीनिक पर नहीं जाता। वो भगवान भरोसे अस्पताल में सड़ता रहता है। यही नहीं पंडित ये डॉक्टर जो दवाइयां लिखते हैं, वो सरकारी अस्पताल में नहीं मिलतीं, बल्कि डॉक्टर साहब की पेट मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं।मैं-सुर्तीलाल जी, सरकारी डॉक्टरों की करतूत क्या सरकार को नहीं मालूम। सुर्तीलाल-सरकार सब जानती है पंडित। लेकिन ये सरकार भी उन डॉक्टरों से कुछ कम नहीं है। अब देखो। बाबा रामदेव योग सिखाकर रोग भगाने लगे तो स्वास्थ्य मंत्री के पेट में दर्द होने लगा। बड़े-बड़े अस्पतालों की नींव हिलने लगी। सभी स्वास्थ्य मंत्री से पूछने लगे-बाबा फ्री में इलाज करेगा तो हमारा खर्चा-बर्चा कैसे चलेगा। हम भी चुनाव लड़ने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं देंगे। समझ लेना। स्वास्थ्यमंत्री घबराए और झटपट बयान दे डाला कि योग से कोई रोग ठीक नहीं होता। अब चिल्लाएं बाबा कुछ होने का नहीं। इस बीच गर्म पकौड़ों के साथ चाय आ गई थी। प्लेट में सजी बर्फी की ओर मोहक मुस्कान फेंककर सुर्तीलाल ने भांग की गोलियां जेब से निकालीं और तीन गोलियां गटकने के बाद दो बर्फियां उदरस्थ कीं। चाय की चुस्की लेते हुए बोले-पंडित, सरकार सेहत के बारे में कितनी चिंतित है, जानना चाहते हो तो सुनो। सरकार कन्फ्यूज है। दुनिया भर में एड्स का इलाज खोजा जा रहा है। और हमारी सरकार कंडोम में ही फंसी है। एक ही इलाज मिला कंडोम। टीवी पर कहवाने लगे- कंडोम बिंदास बोल। अब जिस बच्चे की निकर गीली हो जाती थी बाप के सामने जाते हुए, वो विज्ञापन रटकर बाप से बोल रहा है-पापा बिंदास बोल कंडोम। हालांकि इसके बाद बच्चा क्यों पिट जाता है, इसके बारे में बच्चे के पापा तो जानते हैं, बच्चा नहीं जानता। बच्चा तो भारत माता की जय, जय जवान जय किसान, सोनिया गांधी जिंदाबाद, अटल बिहारी जिंदाबाद की ही तर्ज पर नारा लगाता है कंडोम बिंदास बोल। मुसीबत तो ये कि पापा ने क्यों पीटा, ये तो खुद पापा भी नहीं बता सकते। मैं-लेकिन सुर्तीलाल जी, एड्स जागरूकता के लिए ये तो जरूरी है। सुर्तीलाल-बहुत खूब। करो जागरूकता। हमारी सरकार तो चार कदम आगे बढ़कर जागरूक करने जा रही है। जानते हो पंडित। स्कूलों में अब हमारे-तुम्हारे बच्चों को गुरुजी सिखाएंगे कंडोम का इस्तेमाल। बाकायदा कोर्स लागू किया जा रहा है। सरकारी फरमान के मुताबिक छठीं क्लास से लेकर 12वीं तक गुरुजी बच्चों को पूरा कोकशास्त्र रटा देंगे। सरकार का पूरा ध्यान इन दिनों सेक्स एजुकेशन पर ही जा टिका है। बच्चों को बाकायदा बताया जाएगा कि किस उम्र में वो बाप बनने लायक हो जायेंगे और किस उम्र में लड़कियां मां बनने लायक। कैसे वो बनेगा बाप और कैसे बनेंगी लड़कियां बच्चों की मां। ये सब बचपन में ही सिखा दिया जायेगा। तब घर में कंडोम बिंदास नहीं बोला जायेगा, बल्कि स्कूली बस्ते में किताबों के बीच कंडोम भी रखेंगे। बिल्कुल पेन, पेंसिल की तरह। मैं-सुर्तीलाल जी आप दकियानूसी बातें कर रहे हैं। ये तो अच्छा ही है कि बच्चों को सेक्स के बारे में उचित शिक्षा मिलेगी। ये शिक्षा अज्ञानता से बचाएगी। सुर्तीलाल-चुप भी करो पंडित। आदम और हव्वा ने किस गुरु से ट्रेनिंग ली थी। गाय, भैंस, घोड़े-घोड़ी, कुत्ते कुतिया को किस युनिवर्सिटी में सेक्स एजूकेशन में पीएचडी करवाई जाती है। फिर उन्हें बच्चे कैसे होते हैं। अरे पंडित कुदरत खुद सिखा देती है। सुर्तीलाल पर भंग का सुरूर तो पहले से ही था। एक कटोरी हलवा गटककर तो उनकी आंखें और सुर्ख हो गईं। भंग की तरंग में बोले- -पंडित कलियुग के इस चौथे चरण में सेहत की बात बेमानी है। तन की सेहत तो बना लोगे लेकिन मन का क्या होगा। बच्चे दिन रात टीवी पर हीरो हीरोइन की चूमा चाटी देखेंगे तो क्या खाक बनेगी सेहत। टीवी पर चॉकलेट, टॉफी क्रंच, मंच, चोकोस, मैगी, कोला के विज्ञापन देखने के बाद बच्चों को वही चाहिए. दूध को तो देखते ही उन्हें घिन आने लगती है। बच्चे भी बड़े कनफ्यूज हैं। शाहरुख खान वाला च्यवनप्राश खाएं कि अमिताभ बच्चन वाला। अलबत्ता च्यवनप्राश बनाने वालों ने मोटी रकम देकर इनकी सेहत जरूर दुरुस्त कर दी है। अब बिग बी मुलायम सिंह की सेहत सुधारने में लगे हैं। ऐसा च्यवनप्राश खिलाया है कि दुबला पतला उत्तर प्रदेश दमदार हो गया है। कहते हैं कि यूपी में बहुत दम है। लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा डंक मारा है कि मुलायम को मलेरिया का खतरा पैदा हो गया है। वैसे भी उन्हें माया रोग का अंदेशा है। पान की एक और गिलौरी मुंह में झोंककर सुर्तीलाल ने उसे बगल में दबाया और बोले-वैसे पंडित, रोगों की कहानी भी खूब है। जितना बड़ा आदमी, उतना बड़ा रोग। जितना पैसा, दवा-दारू के उतने बहाने। किसी मजदूर को हॉर्ट अटैक से मरते हमने नहीं देखा है, बुखार-सर्दी जैसे रोग तो तुलसी के पत्ते और अदरक के काढ़ा से ही छूमंतर हो जाते हैं। चोट लगी तो हल्दी-प्याज। कट गया तो घाव पर शिवाम्बु चुआ लिया। न टिटनेस का खतरा न जख्म बढ़ने का। हां एक रोग जरूर है, जो उनकी जिंदगी लेकर ही मानता है और वो है गरीबी का रोगा। भूख के आगे उनकी एक दवा नहीं चलती। भूख जानलेवा होती है, जान लेकर ही मानती है।
Monday, March 26, 2007
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