Sunday, December 9, 2007

रुद्राक्ष की महिमा


रुद्राक्ष के बारे में आमतौर पर सभी लोग थोड़ा बहुत जानते हैं। राजेन्द्र अवस्थी ने जबलपुर से इस बारे में अपनी तरफ से कुछ रोचक जानकारी मेल के जरिए भेजी है जिसे यहां भविष्य के साथियों के सामने रखा जा रहा है। उम्मीद है रुद्राक्ष के बारे में ये जानकारी इस पर यकीन करने वालों के लिए फायदेमंद साबित होगी।


ONE FACED Sun or Surya the center of the Solar system around which all the planets revolve represents one mukhi. It controls the malefic effects of Sun and cure diseases of the right eye, head, ear, bowel and bones. Psychologically the confidence, charisma, leadership qualities and prosperity of the person increase as the Sun is pleased with the wearer.TWO FACED RUDRAKSHThey effectively control the malefic effects of Moon and diseases of the left eye, kidney, intestines etc. Emotionally, there is harmony in relationships. This bead helps in developing harmonious relationships. The moon is the ruling influence and hence it can greatly help in controlling negative traits like anger, frustration and lack of concentration.THREE FACED RUDRAKSHThe ruling planet is Mars, malefic effects are disease of blood, blood pressure, weakness, disturbed menstrual cycle, kidney etc.. Depression, negative and guilty feelings, inferiority complexes can be lessened by wearing this mukhi. The three mukhi Rudraksh is worn to boost the self-confidence and to counter depressions.FOUR FACED The ruling planet is Mercury, representing Goddess Saraswati and Brahma. Malefic effects of Mercury include intellectual dullness, lack of grasping and understanding power, difficulty in effective communication and also neurotic conditions of the mind. This mukhi nullifies the malefic effects of Mercury and pleases Goddess SaraswatiFIVE FACED रुद्राक्ष This mukhi is used to sublimate the malefic effects of Jupiter such as lack of peace, poverty , lack of harmony etc. This bead has several uses. It helps attain success in all walks of life and gain knowledge, wealth, power, fame and achieve goals. It is also very often used in the cure of several diseasesSIX FACED रुद्राक्ष It's ruling planet is Venus. Venus governs genital organs throat, valour, sexual pleasure, love, music etc. This bead enriches the career path and helps you achieve immense professional and academic success. It helps you fulfill dreams and lead a very luxurious life. SEVEN FACED This mukhi governs Saturn, the all powerful Shani Bhagwan. When worn it sublimates the malefic effects of Shani and its disease like, impotency, cold, obstructions, hopelessness, delay, chronic disease, scarcity, worry etc. The seven mukhi helps in building finances and amassing wealth. It can help attain prosperity and peace of mindEIGHT FACED Eight Faced Rudraksh is said to represent lord Ganesha. The elephant headed benign god, the son of lord Shiva and Parvati has special grace on the wearer of this Rudraksh. By wearing it on one's person all the pleasures increase and all the difficulties diminish. This is especially

Thursday, November 22, 2007

कुंडली में गुरु का कमाल


धनु राशि में गुरु के आने की खबर ने खबरियां चैनलों में खूब जगह पाई। गुरु दरअसल ग्रह ही ऐसा है । जिसका आना और जाना किसी भी राशि में खासा मायने रखता है। ग्रहों का राजा होने के कारण और अपने प्रभाव के कारण भी । यही वजह है कि जिस जिस के लग्न या कुंडली में सही जगह बैठा उसके लिए वरदान ही साबित हुआ है। हालही में एक अखबार में सविता शर्मा का लेख पढ़ा जिसमें गुरु के साथ बुध और राहु के समीकरण का जिक्र किया था। जिसके कारण ही शतरंज के बादशाह विश्वनाथन आनंद को उसने महान खिलाड़ी बनाया।


आनंद का जन्मलग्न और जन्मराशि धनु है। इस कारण उनका व्यक्तित्व आकर्षक है। उनके लग्न में मन के कारक चंद्रमा व बुद्धि के कारक ग्रह बुध का अनूठा संगम है। उनकी बुद्धि को तेज व रचनात्मक बनाने में इन ग्रहों का बहुत योगदान है।
ज्योतिष के अनुसार धनु राशि के प्रतीक चिन्ह की व्याख्या ‘हाथ में धनुष लिए एक शिकारी’ के स्वरूप से की जाती है। तीव्र बुद्धि ने आनंद को अपने ध्येय के प्रति पूरी तरह से जागरूक रहने वाला बनाया। इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति उनकी कुंडली के लाभ भाव में स्थित है।
दशमेश व सप्तमेश बुध लग्न में षष्टेश व लाभेश शुक्र द्वादश में और द्वादश का स्वामी पराक्रम के तीसरे घर में होता हुआ जीवन में अच्छी स्थितियों का निर्माण कर रहा है। सूर्य एवं शुक्र व मंगल से हर्ष योग भी बनता है। कुंडली राशियोग, चक्रवर्ती राजयोग, तीव्र बुद्धि योग, देश-विदेश योग, गजकेसरी और पारिजात योग से ओतप्रोत है।
कुंभ का राहु तीसरे स्थान में मूल त्रिकोण राशि में बैठकर उन्हें आक्रामक खिलाड़ी बना रहा है। लग्न के स्वामी बृहस्पति की दृष्टि पंचम घर में पड़कर बुद्धिबल में तीव्रता प्रदान करती है। पंचम भाव और पंचमेश मंगल पर दृष्टि होने से दिमागी खेलों में पछाड़ने की क्षमता विद्यमान रहती है। शनि ग्रह नीच के परंतु चंद्रमा से पंचम होने के कारण त्रिकोण का फल देने में सक्षम है।
भाग्येश सूर्य विदेशों से ख्याति प्राप्त कराता है। शुक्र लाभेश और षष्टेश बनकर प्रतियोगिता के घर पर दृष्टि डाल रहा है। इस कारण आनंद कभी हार नहीं मानेंगे। भाग्येश सूर्य व लाभेश शुक्र की अंतर्दशा में १९८७ में आनंद ने विश्व जूनियर शतरंज चैंपियनशिप जीती। चंद्रमा की महादशा में १८ वर्ष की आयु में उन्होंने ‘ग्रैंड मास्टर’ की उपाधि पाई।
वर्तमान समय में मान-सम्मान का ग्रह राहु तीसरे घर में स्थित होकर आगामी १८ वर्षो तक लाभ दिलाता रहेगा। २९ सितंबर, २क्क्७ को राहु में गुरु और बुध की स्थिति ने उन्हें विश्व शतरंज चैंपियनशिप दिलाई। नवंबर,२00६ से अप्रैल, २00९ तक राहु में बृहस्पति की अंतरदशा उन्हें शतरंज के क्षेत्र में वर्चस्व दिलाने में सहायक सिद्ध होगी।
आनंद के जीवन में महादशाओं व गोचर के अंतराल की बड़ी अहम भूमिका रही है, जो वर्तमान व भविष्य में प्रतिद्वंद्वियों को हराने में उनके लिए सहायक सिद्ध होंगी। इनकी कुंडली में चंद्रमा से ग्यारहवां बृहस्पति होने के कारण जीवन में जीतने और सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने की इच्छा सदैव बनी रहेगी। उनकी कुंडली में मंगल व शनि का राशि परिवर्तन उनको आक्रामक खिलाड़ी बनाएगा।

Saturday, August 11, 2007

Descriptions de signe

Bélier… l'impulsion à être… la volonté à survivre। C'est l'équinoxe de ressort… la saison de la lumière rallongeante। Graines qui slumbering au-dessous de la terre depuis le harvestime de la poussée précédente d'automne vers le haut, désireuses d'être soutenu।
Taureau le désir d'être… l'appréciation de la sensation terrestre। Le ressort cherche et trouve la plénitude. L'air est nombreux avec les mélodies de la vie… dans la précipitation du jet et le trill harmonieux de l'oiseu. La terre est abondante et verte… un endroit de invitation.Les Gémeaux l'impulsion à la fleur et pollinisent… le bourdonnement et la part। La saison du ressort écrit sa phase finale et la pousse de l'équinoxe est maintenant entièrement fleur. Les abeilles bourdonnent activement de la fleur à la fleur et les brises lumineuses portent le pollen. .Cancer l'impulsion à protéger et nicher। Le solstice d'été fait son entrée। Le Cancer commence par la plus longue journée de l'année। La pleine floraison mène au fruit frais-formé et désire ardemment, des jours chauds appellent en avant de nouvelles créatures dans le monde। Lion… le recommander de polir… le désir d'être। La plénitude d'extensions d'été et les jours sont chauds। La croissance faite, seulement la maturation reste à accomplir। Le blé met ses cosses d'or et les joues des pommes croquantes adoptent un élément chauffant rougissent। Vierge la nécessité d'organiser et analyser… pour se préparer à la moisson। L'été vient à son extrémité inévitable pendant que la vie ajoute un contact final pour perfectionner la moisson। Il est maintenant temps de stocker la générosité de la terre। La vie analyse cette générosité, les besoins de la communauté et des plans la récolte pendant l'année qui suivra।
Balance l'associé du besoin… le recommander de rassembler। C'est l'aube de l'équinoxe d'automne। Jour et nuit pause à un point d'égalité। La lumière diminue pendant que les nuits se développent longtemps। Une conscience des soirées fraîches bientôt à venir crée le désir de partager un nid।
Scorpion le désir d'aller sous l'extérieur… fusionner। La vie sur les matrices extérieures du manteau de la terre। La force de l'usine revient à la racine, le potentiel de la fleur sécrétée dans la graine. Au-dessous du surace, la vie brûle… l'attente à éclater.
Sagittaire… que le désir contemple, pour comprendre et philosopher। Le travail de la saison est effectué। La moisson est stockée et si tout va bien dans l'abondance suffisante pour servir la communauté jusqu'au ressort.
Capricorne… la nécessité de conserver… la survie du clan। Soutenu la plus longue nuit de l'année, le Capricorne entre sur les talons du solstice d'hiver. Le monde est froid avec les ressources limitées et la moisson doit être faite au bout jusqu'au ressort.
Verseau… le recommander à l'individuate। Confiné dans l'abri mais réveillé par la lumière rallongeante, l'animal social exige la liberté।
Les Poissons la nécessité de se dissoudre, forme-décalent et deviennent un avec une plus grande vérité। Le ressort n'est pas lointain. L'hiver veut se dissoudre dans un nouveau cycle de croissance. La glace désire fondre et retourner une fois de plus aux océans et aux mers.par : K Madhu, Maritius

Monday, May 7, 2007

ऐश-अभि की कहानी-सुर्तीलाल की जुबानी

बिग बी ने जिस सादगी और कम लोगों के बीच ऐश अभिषेक की शादी की योजना बनायी थी हुआ उसके उलट। दलील इसके पीछे जो भी हो। बॉलीवुड की कई हस्तियों को शादी का ये अंदाज नहीं भाया। सबसे ज्यादा शिकायत उन्हें हुई जो खुद को बिग बी का सबसे करीबी मानते थे। आलम ये है कि शादी को लेकर रोज नए अफसाने बन रहे हैं और शहंशाह अमिताभ के लिए रोज मुसीबतें खड़ी हो रही हैं। इसी को अपने अंदाज में बयां कर रहे हैं विकास मिश्र -
रविवार का दिन था। परिवार के साथ मैं भी छुट्टी का मजा ले रहा था कि शाम ढलते ही सुर्तीलाल घर में दाखिल हो गये। मैंने कहा हो गई छुट्टी की छुट्टी। खैर..सुर्तीलाल ने झोले से मिठाई का डब्बा निकाला और बोले-लो पंडित.. मिठाई खाओ..बड़ी स्पेशल मिठाई है ये। मुझे लगा कि शायद बनारस से लौटे होंगे सुर्तीलाल तो वहां की मिठाई होगी। शंका मिटाने के लिए पूछ ही बैठा। सुर्तीलाल बोले-नहीं पंडित ये बनारस की नहीं बच्चन की मिठाई है। बेटे की शादी में अमिताभ बच्चन मुझे बुलाना भूल गए थे। अब मिठाई भिजवाई है। लो तुम भी खाओ, बच्चों को भी खिलाओ।
मैं चौंका। सुर्तीलाल और अमिताभ बच्चन..। बात कुछ हजम नहीं हुई। कहां अमिताभ बच्चन का रुतबा और कहां फक्कड़ भंगेड़ी फकीर सुर्तीलाल। पूछ बैठा-क्या वाकई अमिताभ बच्चन ने ये मिठाई भिजवाई है सुर्तीलाल जी। आपसे उनका परिचय कब हुआ।
यही तो तुम्हारे में खराबी है पंडित..। मिठाई खाओ, पचड़े में मत पड़ो, लेकिन तुम तो पूरी बात जाने बिना मानोगे नहीं। तो चलो मैं तुम्हें बता दूं कि बिग बी से मेरा पुराना और खानदानी नाता है। मेरे पिताजी और डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन कई मंचों पर साथ-साथ कविता पढ़ चुके हैं। अमिताभ से तो मेरी हर हफ्ते बात होती है। बेटे की शादी का फैसला लेते वक्त भी उन्होंने पूछा था मुझसे। मैं तो इस शादी की एक-एक बात जानता हूं...। कहते-कहते सुर्तीलाल का सिर गर्व से ऊंचा उठ गया।
इस बीच अंदर से पानी भरी गिलासें आ गई थीं। सुर्तीलाल ने भांग की दो गोलियां गटकीं, मिठाई के डिब्बे से निकालकर तीन चमचम मुंह के भीतर ठेला और सोफे पर पालथी मारकर बैठ गए। मुझे मजाक सूझी सोचा जरा सुर्तीलाल को छेड़ा जाये। पूछ बैठा-आप अमिताभ के इतने करीब हैं तो बताइए कि शादी में मीडिया को क्यों नहीं भीतर जाने दिया गया।
सुर्तीलाल-मीडिया को बुलाकर आफत बुलानी थी क्या। अरे हाई प्रोफाइल शादी थी, करोड़ों के जेवरों से लदी फनी दुल्हन। बिग बी ने करोड़ों लुटाए होंगे। अरबपति खरबपति बड़े बड़े उद्योगपति आए थे। अब ऐसे में मीडिया वाले घुसते तो मेहमानों की पगड़ी पर कैमरा थोड़े चलता। वो तो घुसा रहता गहनों की नापतौल में। शादी पर कितना खर्च हुआ, इसका हिसाब मीडिया बता देता। ऐसे में अमिताभ के पुराने दुश्मन इनकम टैक्स वाले जलसा-प्रतीक्षा में घुसते तो दूल्हा-दुल्हन का पीछा ताहिती तक करते। हनीमून पर टैक्स का मजमून पकड़ा देते। तो प्यारे अमिताभ भइया ने इनकम टैक्स वालों के डर से मीडिया को नहीं बुलाया।
मैं-लेकिन कई दोस्तों को भी तो नहीं बुलाया। धर्मेंद्र, प्रकाश मेहरा, विनोद खन्ना, जावेद अख्तर, गुलजार, शत्रुघ्न सिन्हा, शाहरुख खान को न्यौता नहीं दिया। शत्रु ने तो मिठाई भी लौटा दी।
सुर्तीलाल-देखो पंडित। जबसे अमर सिंह अमिताभ के दोस्त बने, तबसे दोस्ती पर उनका एकमुश्त कब्जा हो गया। अमर सिंह छोटे भइया भी हैं और दोस्त भी। समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं तो अमिताभ को भी मुलायम रंग में रंग दिया। धर्मेंद्र, विनोद खन्ना और शत्रु तो समाजवादी पार्टी की शत्रु बीजेपी के नेता बन गए हैं ऐसे में शत्रुओं को दावत क्यों देते। अमर प्रेम के ही चलते ही कई लोग दावत उड़ाने से रह गए। लेकिन असली खेल पता चल गया राज बब्बर को। राज बब्बर ने अमर सिंह को शादी का नाऊ ठाकुर कहा था। दरअसल सच्चाई यही थी। शादी का पूरा बंदोबस्त अमर सिंह के ही जिम्मे थे। किसे बुलाना है, किसे नहीं, उन्हें ही तय करना था। यानी कि ठाकुर साहब नाऊ ठाकुर की भूमिका में थे। तो वो भला दरिंदा कहने वाले शाहरुख को क्यों बुलाते।
मैं-सुर्तीलाल जी अमिताभ के इस अमर प्रेम की असलियत क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अमर सिंह ने पैसे जुटाकर उन्हें कर्जे से उबारा था।
सुर्तीलाल-बहुत भोले हो पंडित। अमर सिंह की क्या औकात कि बिग बी को पैसा दिलवाते। चलो पहले कर्जे की कहानी ही बता दें। जरा सोचो अपने दौर में बिग बी पूरे बॉलीवुड में सबसे ज्यादा पैसे लेते थे। जब बाकी स्टार ज्यादा से ज्यादा दस लाख पाते थे तो बिग बी 35 लाख वसूलते थे। दारूबाजी, यारबाजी का शौक था नहीं। यानी साइड के खर्चे नहीं थे। कंपनी बनाई तो हीरो-हीरोइन बनने के लिए जवानों को न्योता दिया। सबसे ड्राफ्ट मंगवाया। इस तरह से करोड़ों कमाए और छोटे बजट की फिल्म बनाई तेरे मेरे सपने। फिल्म में लागत ज्यादा नहीं थी, इसीलिए कमाई भी हुई। कंपनी ने दूसरा काम किया विश्व सुंदरी प्रतियोगिता के आयोजन का। दुनिया भर की सुंदरियां जुटीं। घाटे का तो इसमें सवाल ही नहीं था। बैंडिट क्वीन का डिस्ट्रीब्यूशन किया, तो फिल्म हिट हो गई। यानी कमाई दूनी। अब कंपनी घाटे और कर्जे में कैसे चली गई पंडित। जरा सोचो...खेल क्या है।
मैं-आपका भी जवाब नहीं है सुर्तीलाल जी, कहां की चीज कहां जोड़ देते हैं। लेकिन अगर कर्जा घाटा नहीं था तो अमर सिंह इतने नजदीक कैसे आ गए।
सुर्तीलाल-पंडित अमिताभ को छोटी चीजें बहुत पसंद हैं। बीवी चुनी तो वो भी छोटी। किसी बिजनेसमैन से मुलाकात के वक्त बिग बी की नजर पड़ी अमर सिंह पर। गोल मटोल छुटकू अमर को देखकर बिग बी के मुंह से निकल गया-यही है राइट च्वाइस बेबी आहा। लम्बू जी को टिंगू जी मिल गए। टिंगू जी ने बिग बी को मुलायम सिंह के पास-पास कर दिया। लम्बू जी को राजनीति की छतरी चाहिए थी। कांग्रेस की छतरी फट चुकी थी। अमर सिंह ने मुलायम की छतरी ला दी और बन गए सबसे प्यारे दोस्त। टिंगू जी ने जया भाभी के लिए राज्यसभा की कुर्सी भी दे दी। यही नहीं टिंगू जी ने लम्बू जी के लिए बहू का भी इंतजाम कर दिया। ऐश्वर्या के घर बात चलाने वही गए थे। ऐसे में लम्बू जी को लगा कि यार ये टिंगू बड़े काम की चीज है। इसलिए दोनों अब साथ गाते हैं-बने चाहे दुश्मन बॉलीवुड हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा।
मैं-आपने तो गाने की ऐसी की तैसी कर दी। लेकिन ऐश्वर्या को तो अभिषेक ने पसंद किया था। दोनों में प्यार हुआ..फिर शादी तक बात पहुंची। आप कैसे कहते हैं कि सब अमर सिंह ने करवाया।
सुर्तीलाल- तो तुम भी झांसे में आ गए पंडित। कैसी मुहब्बत कैसा प्यार। चलो मैं इस शादी में परदे के पीछे की पूरी कहानी सुनाता हूं। अमिताभ छोटी चीजों के शौकीन हैं। लेकिन बेटे को हमेशा बड़ी चीजें ही समझाई। लम्बी ही नहीं उम्र में भी बड़ी बहू ले आए। ये मुहब्बत वाली कहानी तो बस उड़ाई गई है। ऐश ने तो दो-दो बार मुहब्बत की। एक बार सलमान से, दूसरी बार विवेक से। दो बार मुहब्बत का अनुभव हुआ, लेकिन ऐश्वर्या ने सोचा कि टाइम पास बहुत हुआ। अब शादी कर लेते हैं। लेकिन डर था सलमान का। कहीं ऐसा ना हो कि बॉडी बिल्डर सलमान गुस्से में दूल्हे को अस्पताल ना भेज दे। चिंता बड़ी थी। सहारा एम्पायर की वाइस प्रेसीडेंट भी हैं ऐश। वहीं मीटिंग में मुलाकात हुई और ऐश्वर्या ने अपनी चिंता अमर सिंह को बता दी। अमर सिंह ने चश्मा ऊपर नीचे किया और जोर-जोर से हंसने लगे कि मिल गया मिल गया और मिल गया। ऐश चौंकीं, क्या मिल गया। अमर ने कहा कि बिग बी को मैं पटाता हूं, तुम्हारी शादी अभिषेक से कराता हूं। सलमान की औकात नहीं कि वो बड़े भइया के बंगले की ओर सिर उठाकर भी देखें। उधर छोटे भइया ने बड़े भइया को समझाया-देखो भइया दुनिया में पैसा है तो सब कुछ है। बुढ़ौती में तुम भी कमा रहे हो, बेटा भी ठीक ठाक कमा ले रहा है। ऐसे में अगर एक कमाऊ बहू आ गई तो पैसा छप्पर फाड़कर बरसेगा। अगर ऐश्वर्या से अभिषेक की शादी करवा दो तो बेटे को वो हॉलीवुड में भी काम दिला देगी। बॉलीवुड में सिक्का ना चला तो हॉलीवुड में चलेगा। ऊपर से दुनिया की सबसे खूबसूरत बहू तुम्हारे घर में आएगी। ऐसी बहू जो फिल्मों और विज्ञापनों में तुम्हारे बेटे से ज्यादा कमाती है। बड़के भइया पैसा देखो पैसा। सुबह उसका मुंह देखकर उठे तो पूरा दिन चंगा। वैसे भी दोनों साथ-साथ फिल्में कर रहे हैं। बात चलाओ तो दोनों में अंडरस्टैंडिंग भी हो जायेगी।
मैं-फिर क्या हुआ।
सुर्तीलाल-होना क्या था। पैसे वाली बात लाला अमिताभ को पसंद आ गई। आज्ञाकारी बेटे को समझा दिया। बेटा भी राजी हो गया। बैठे-ठाले दुनिया की सबसे हसीन लड़की बीवी बन रही थी। तो बेटे ने इसे पिता का गिफ्ट समझा और ले लिए सात फेरे।
सुर्तीलाल पर भांग का सुरूर चढ़ने लगा था। मिठाई का डिब्बा खोलकर दो बर्फी और निगल ली। पानी पीकर पान की गिलौरी मुंह में डाले और पान घुलाते हुए बोले-पंडित सब माया का खेल है। उधर दूल्हा दुल्हन मौज काट रहे हैं और हम लोग पंचायत कर रहे हैं। हम भी शादी का जश्न मना रहे हैं। वैसे पंडित ये बता दें कि अमिताभ ने मुझे कोई मिठाई उठाई नहीं भेजी थी। वो तो पड़ोस के शर्मा जी के यहां बेटा हुआ है, उन्होंने डिब्बा पकड़ा दिया। सोचा कि इसी बहाने तुमसे थोड़ी चकल्लस कर लूं।

Sunday, April 22, 2007

सुर्खियों में आने की ललक और टीआरपी


सदी के महानयक के घर शादी तो निपट गई। लेकिन शादी से कुछ घंटे पहले ही जो ड्रामा हुआ वह भी कम फिल्मी नहीं था। जिस वक्त प्रतीक्षा में दूल्हा रुप की रानी के घर बारात लेकर जाने की तैयारी कर रहा था, बाहर हया रिज़वी उर्फ जाह्नवी कपूर प्यार का रोना ले कर बैठी थी। वह भी ऐसा जिसने देश के सभी न्यूज चैनलों को लाइव दिखाने पर मजबूर कर दिया। ( बेशक अखबारों की नज़र में टीआरपी के लिए) भले ही जाह्ववी का नाटक सुर्खियां बंटोरने के लिए हो, उसकी हरकतों से एक बात साफ थी कि वो मानसिक रुप से पूरी तरह फिट कतई नहीं है। हुआ भी यही, खुदकुशी की कोशिश में गिरफ्तारी के बाद छूटने के चंद घंटो बाद वो प्रतीक्षा जा पहुंची। लेकिन इससे पहले की वहां कोई और ड्रामा होता पहले से मौजूद पुलिस ने कोई खेल नहीं होने दिया।
खुद को अभिषेक की पत्नी बताने वाली जाह्ववी का सच हांलाकि जल्द सामने आ गया। और मनोचिकित्सकों ने तो यहां तक कह डाला कि इरोटोमेनिया के मरीज का ये पहला लक्षण है।
यहां इस किस्से का जिक्र इसलिए नहीं किया जा रहा कि ऐश और अभिषेक की शादी के लिए तमाम पूजा पाठ के बावजूद बखेड़ा क्यो खड़ा हो गया। या ये किसी मंगल दोष का पहला फल तो नहीं था। उस बखेड़े की खबर के साथ साथ एक खबर ये भी सामने आई की न्यूज चैनल आखिर चाहते क्या है ?
एक अखबार ने तो इसे खबर के नाम पर भद्दा मजाक बताते हुए यहां तक लिख डाला कि टीआरपी के नाम पर ये चैनल वाले जो करें सब कम है।
हैरत होती, ऐसा लिखने वालों पर और गाहे बगाहे टीआरपी के नाम पर ज्ञान बांटने वालों पर। क्योंकि खबरों का चयन और उसे दिखाने वाले टेलीविजन के पत्रकार किसी दूसरी दुनिया से नहीं आते बल्कि यही के हैं। या यूं कहे कि साठ फीसदी से ज्यादा अखबार की दुनिया के ही हैं। जाहिर है उन्हें भी इतनी समझ तो होगी ही कि खबरों का चयन कैसे हो और उसे कैसे परोसे। रही बात टीआरपी की तो सच यही है कि जो बिकता है वह दिखता है। चाहे टेलीविजन हो या अखबार। सिर्फ ज्ञान की बातें और सरकारी ख़बर कोई नहीं देखना चाहता। किसी भी टीवी मीडिया ग्रुप का भविष्य अब वही टीआरपी तय कर रहे हैं जिसे लेकर कुछ लोग हाय तौबा मचाते रहते हैं। एक दूसरे अखबार को इस बात पर हैरानी थी कि जूनियर बच्चन और ऐश्वर्या से जुड़ी खबरों तक तो ठीक, जाह्ववी के तलाकशुदा पति की दादी की बाइट लेने के लिए क्या मारा मारी ?
अब उन्हें कौन समझाए कि जिस खबरिया चैनलों पर कलम चला कर वो कालम भर रहे है फिर उसका भी क्या मतलब ? बहस इस पर नहीं होनी चाहिए कि कौन क्या लिख रहा है या कौन क्या दिखा रहा है। बहस इस पर होनी चाहिए कि कितनी बड़ी आबादी आज क्या देख रही है और क्या पढ़ना चाहती है। लेकिन ये ज्ञान पिलाने का काम कोई क्यों करें ?
खबरों की इतनी चीर फाड़ अगर होने लगे तो फिर इस बात को भी बताने की भला क्या जरुरत की विदाई से पहले ऐश्वर्या के मायके, ला-मेर में एक शानदार पार्टी दी गई और करीब दो सौ लोग इस पार्टी में पहुंचे। ये तो छोड़िए तमाम चैनलों ने ये तक जानने में ताकत झोक दी कि उस पार्टी में बिग बी के अलावा कौन कौन थे।
मामला मटुक नाथ का हो या किसी मूर्ति के दूध पीने का, खबर है तो दिखेगा ही, और चर्चा होगी तो अखबार भी छापेंगे ठीक वैसे ही जैसे ऐश और जाह्ववी की खबर भी चटकारे लेकर छपी।

Sunday, April 8, 2007

ज्योतिष का बैक्टीरिया !

पिछले सप्ताह दो खत मिले और दोनों ही दिलचस्प थे। उनमे से एक किसने लिखा नहीं मालूम लेकिन एक खत मेरे पुराने मित्र आनंद कुमार का है जो पेशे से डॉक्टर हैं। पहले खत में लिखा है कि भविष्य जैसे ब्लॉग में भविष्य के बारे में कम सियासत और खेल पर विचार ज्यादा पढ़ने को मिलते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि इस ब्लॉग को खोलते ही हमे राहू काल और तिथि के अलावा ज्योतिष से जुड़ी बाकी जानकारी भी मिल जाए। दूसरे खत में आनंद ने ज्योतिष की तुलना उस बैक्टीरिया से की है जिसका वक्त रहते इलाज न होने पर बड़ी बीमारी हो सकती है।
आनंद की बात से कुछ हद तक सहमत हूं। ये विषय ही कुछ ऐसा है। जिसमें बड़े बड़े नामी गिरामी लोगों की बातें फुस्स होते मैने क्या सभी ने देखी होगी। सवाल है किसी भी चीज के पीछे आंख बंद करके चलने को कौन कह रहा है?
मुझे याद है बचपन में मेरे पिता जी के एक मित्र जो वॉलीवुड से जुड़े थे अचानक मुफलिसी के दौर में आ गए थे। पूना फिल्म इंस्टीट्ट के टॉपर रवीन्द्र वर्मा आशा पारीख के बैचमेट थे और अपने जमाने में कई फिल्मों में संगीत दिया। लेकिन बलराज साहनी को लेकर फिल्म प्रायश्चित बनाना उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। फिल्म तो फ्लॉप हुई ही नौबत सड़क पर आने की आ गई। मरता क्या न करता। जिसने जो ऊपाय बताए वर्मा जी ने सब किया। किसी ने हनुमान मंदिर सौ बार दर्शन का रास्ता सुझाया तो किसी ने उस दौर में भी अंगूठी और ताबीज पहनने की राय दे डाली। पत्नी मामूली टीचर थी। तनख्वाह के नाम पर जो मिलता घर खर्च में चला जाता। परिवार तो बड़ा नहीं था एक बेटी थी । लेकिन तंग हाल में भी मैने कभी उनका धैर्य टूटते नहीं देखा। वजह थी ग्रहों पर उनका यकीन । उन्हें यकीन था कि शनि की दशा से सड़क पर आया हूं तो इसी दशा में कुछ कमाल भी करुंगा। सो फिल्म से तौबा कतई नहीं की। पिता जी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश चलचित्र निगम के सहयोग से एक नयी फीचर फिल्म में जुट भी गए। फिल्म तो पूरी नहीं हुई,लेकिन रवीन्द्र वर्मा को अस्सी के दशक के उस बुरे दौर में उन्ही कथित पंडितों की अधकचरी भविष्यवाणी और आस्था ने ही जीवन में आगे बढ़ने का साहस दिया। मुझे नहीं मालूम कितने साल बाद और क्या करने से वर्मा जी की किस्मत चमकी,लेकिन बुरे वक्त का भविष्य हमेशा अच्छा होता है इस बात का अटूट विश्वास उन्हें उसी बैक्टीरिया ने कराया जिससे आनंद जी को बड़ी बीमारी होने का खतरा लगता है।
भविष्य में अच्छा तभी होता है जब बुरा दौर गुजरता है। रही बात किस्मत बताने की उसका दावा कोई नहीं कर सकता। ज्योतिष के जरिए महज संकेत मिलते हैं। ब्लॉग विचार व्यक्त करने का एक माध्यम है। लेकिन किसी को किसी के विचार से जीने की राह मिले तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। भले ही विचार सियासत और खेल से जुड़े क्यों न हो।

Friday, April 6, 2007

काल सर्प- महज एक खौफ


बहुत कम ज्योतिषी ही काल सर्प योग को हौवा नहीं बनाते । उन्ही में से एक हैं के एन राव । भारतीय विद्याभवन के ज्योतिष विभाग में सलाहकार राव को इस विषय में महारथ हासिल है। खास कर काल सर्प के बारे में तो उनके विचार ही अलग है। और उनकी अगर माने तो इस योग का व्यक्ति बिगड़ता ही नहीं बनता भी है। वह भी कई बार राजा की तरह। इस लिए जो लोग काल सर्प योग से भयभीत हैं वो डरने की बजाए इसे समझे तो शायद उन्हें कुछ तसल्ली हो सकती है कि सब खराब ही नहीं कुछ योग और बातें अच्छी भी होती है।लेकिन कई ऐसे भी ज्योतिषी हैं जो इस मसले पर अलग राय रखते हैं। कई ज्योतिष तो इसका सही जवाब भी नहीं दे पाते और कुछ इसके निदान के लिए त्रयम्बकेश्वर और उज्जैन तक भेजते हैं। जरुरत लेकिन वैज्ञानिक नजरिए से इसे समझने की है। तभी सटीक समाधान भी हो सकता है।काल सर्प योग का उल्लेख किसी भी प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। सच तो ये है कि कुछ ज्योतिषियों की ही ये देन है। राहू व केतु से बनने वाला या केतु राहू से बनने वाले दोष को काल सर्प दोष की संज्ञा दी गई है। इसको आधुनिक नजरिए से देखा जाए तो राहू उत्तरी ध्रुव का वो भाग है, जहां अंधकार है। वहीं केतु दक्षिणी ध्रुव का वो भाग है, जहां अंधकार है। पृथ्वी एक्सल पर घूमती है,जिसे उत्तरी ध्रुव व दक्षिण ध्रुव के कोने को माना है। पृथ्वी लगातार घूमती रहती है। इसलिए ऊपर से पड़ने वाली रोशनी हर जगह पड़ेगी। वहीं पृथ्वी के नीचे वाले ग्लोब से बल्ब की रोशनी डालें तो ऊपर वाले भाग पर रोशनी नहीं पड़ेगी।इस तरह ग्रहों को समझें। जिस भाग से गृहों की रोशनी पड़ेगी, वह उत्तरी ध्रुव है। इसे केतु व राहू के मध्य ग्रहों के होने से शुभ फल नहीं मिलते। कई पत्रिकाएं ऐसी होती हैं, जिनमें केतु मध्य राहू होने से लोगों को परेशानियां होती हैं और वह ऊंचाइयों पर पहुंचते-पहुंचते रहे जाते हैं। इसे ही काल सर्प दोष कहा जाता है।जानकारों के मुताबिक इसका सबसे सरल और सटीक अनुभूत उपाय रवि पुष्य नक्षत्र में विधि-विधान से तीन धातु सोना, आठ रत्ती तांबा और 16 रत्ती चांदी 12 रत्ती के हिसाब से लेकर तारों की गुत्थी की हुई अंगूठी अनामिका के नाम की रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े उस दिन सुबह 9 से 11 के बीच बनवाकर किसी भी रविवार को शुद्ध कर पहनी जाती है।सोना, पुखराज या गुरु की प्रतिनिधित्व धातु है, वहीं सूर्य मंगल के लिए तांबा-चांदी, चंद्र व शुक्र के लिए होती है। इन सबका एक सर्कल बनकर पूरे शरीर को प्रभावित करता है व जो भी बाधाएं आती हैं, इसके पहनने से दूर हो जाती हैं।