Sunday, April 22, 2007

सुर्खियों में आने की ललक और टीआरपी


सदी के महानयक के घर शादी तो निपट गई। लेकिन शादी से कुछ घंटे पहले ही जो ड्रामा हुआ वह भी कम फिल्मी नहीं था। जिस वक्त प्रतीक्षा में दूल्हा रुप की रानी के घर बारात लेकर जाने की तैयारी कर रहा था, बाहर हया रिज़वी उर्फ जाह्नवी कपूर प्यार का रोना ले कर बैठी थी। वह भी ऐसा जिसने देश के सभी न्यूज चैनलों को लाइव दिखाने पर मजबूर कर दिया। ( बेशक अखबारों की नज़र में टीआरपी के लिए) भले ही जाह्ववी का नाटक सुर्खियां बंटोरने के लिए हो, उसकी हरकतों से एक बात साफ थी कि वो मानसिक रुप से पूरी तरह फिट कतई नहीं है। हुआ भी यही, खुदकुशी की कोशिश में गिरफ्तारी के बाद छूटने के चंद घंटो बाद वो प्रतीक्षा जा पहुंची। लेकिन इससे पहले की वहां कोई और ड्रामा होता पहले से मौजूद पुलिस ने कोई खेल नहीं होने दिया।
खुद को अभिषेक की पत्नी बताने वाली जाह्ववी का सच हांलाकि जल्द सामने आ गया। और मनोचिकित्सकों ने तो यहां तक कह डाला कि इरोटोमेनिया के मरीज का ये पहला लक्षण है।
यहां इस किस्से का जिक्र इसलिए नहीं किया जा रहा कि ऐश और अभिषेक की शादी के लिए तमाम पूजा पाठ के बावजूद बखेड़ा क्यो खड़ा हो गया। या ये किसी मंगल दोष का पहला फल तो नहीं था। उस बखेड़े की खबर के साथ साथ एक खबर ये भी सामने आई की न्यूज चैनल आखिर चाहते क्या है ?
एक अखबार ने तो इसे खबर के नाम पर भद्दा मजाक बताते हुए यहां तक लिख डाला कि टीआरपी के नाम पर ये चैनल वाले जो करें सब कम है।
हैरत होती, ऐसा लिखने वालों पर और गाहे बगाहे टीआरपी के नाम पर ज्ञान बांटने वालों पर। क्योंकि खबरों का चयन और उसे दिखाने वाले टेलीविजन के पत्रकार किसी दूसरी दुनिया से नहीं आते बल्कि यही के हैं। या यूं कहे कि साठ फीसदी से ज्यादा अखबार की दुनिया के ही हैं। जाहिर है उन्हें भी इतनी समझ तो होगी ही कि खबरों का चयन कैसे हो और उसे कैसे परोसे। रही बात टीआरपी की तो सच यही है कि जो बिकता है वह दिखता है। चाहे टेलीविजन हो या अखबार। सिर्फ ज्ञान की बातें और सरकारी ख़बर कोई नहीं देखना चाहता। किसी भी टीवी मीडिया ग्रुप का भविष्य अब वही टीआरपी तय कर रहे हैं जिसे लेकर कुछ लोग हाय तौबा मचाते रहते हैं। एक दूसरे अखबार को इस बात पर हैरानी थी कि जूनियर बच्चन और ऐश्वर्या से जुड़ी खबरों तक तो ठीक, जाह्ववी के तलाकशुदा पति की दादी की बाइट लेने के लिए क्या मारा मारी ?
अब उन्हें कौन समझाए कि जिस खबरिया चैनलों पर कलम चला कर वो कालम भर रहे है फिर उसका भी क्या मतलब ? बहस इस पर नहीं होनी चाहिए कि कौन क्या लिख रहा है या कौन क्या दिखा रहा है। बहस इस पर होनी चाहिए कि कितनी बड़ी आबादी आज क्या देख रही है और क्या पढ़ना चाहती है। लेकिन ये ज्ञान पिलाने का काम कोई क्यों करें ?
खबरों की इतनी चीर फाड़ अगर होने लगे तो फिर इस बात को भी बताने की भला क्या जरुरत की विदाई से पहले ऐश्वर्या के मायके, ला-मेर में एक शानदार पार्टी दी गई और करीब दो सौ लोग इस पार्टी में पहुंचे। ये तो छोड़िए तमाम चैनलों ने ये तक जानने में ताकत झोक दी कि उस पार्टी में बिग बी के अलावा कौन कौन थे।
मामला मटुक नाथ का हो या किसी मूर्ति के दूध पीने का, खबर है तो दिखेगा ही, और चर्चा होगी तो अखबार भी छापेंगे ठीक वैसे ही जैसे ऐश और जाह्ववी की खबर भी चटकारे लेकर छपी।

Sunday, April 8, 2007

ज्योतिष का बैक्टीरिया !

पिछले सप्ताह दो खत मिले और दोनों ही दिलचस्प थे। उनमे से एक किसने लिखा नहीं मालूम लेकिन एक खत मेरे पुराने मित्र आनंद कुमार का है जो पेशे से डॉक्टर हैं। पहले खत में लिखा है कि भविष्य जैसे ब्लॉग में भविष्य के बारे में कम सियासत और खेल पर विचार ज्यादा पढ़ने को मिलते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि इस ब्लॉग को खोलते ही हमे राहू काल और तिथि के अलावा ज्योतिष से जुड़ी बाकी जानकारी भी मिल जाए। दूसरे खत में आनंद ने ज्योतिष की तुलना उस बैक्टीरिया से की है जिसका वक्त रहते इलाज न होने पर बड़ी बीमारी हो सकती है।
आनंद की बात से कुछ हद तक सहमत हूं। ये विषय ही कुछ ऐसा है। जिसमें बड़े बड़े नामी गिरामी लोगों की बातें फुस्स होते मैने क्या सभी ने देखी होगी। सवाल है किसी भी चीज के पीछे आंख बंद करके चलने को कौन कह रहा है?
मुझे याद है बचपन में मेरे पिता जी के एक मित्र जो वॉलीवुड से जुड़े थे अचानक मुफलिसी के दौर में आ गए थे। पूना फिल्म इंस्टीट्ट के टॉपर रवीन्द्र वर्मा आशा पारीख के बैचमेट थे और अपने जमाने में कई फिल्मों में संगीत दिया। लेकिन बलराज साहनी को लेकर फिल्म प्रायश्चित बनाना उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। फिल्म तो फ्लॉप हुई ही नौबत सड़क पर आने की आ गई। मरता क्या न करता। जिसने जो ऊपाय बताए वर्मा जी ने सब किया। किसी ने हनुमान मंदिर सौ बार दर्शन का रास्ता सुझाया तो किसी ने उस दौर में भी अंगूठी और ताबीज पहनने की राय दे डाली। पत्नी मामूली टीचर थी। तनख्वाह के नाम पर जो मिलता घर खर्च में चला जाता। परिवार तो बड़ा नहीं था एक बेटी थी । लेकिन तंग हाल में भी मैने कभी उनका धैर्य टूटते नहीं देखा। वजह थी ग्रहों पर उनका यकीन । उन्हें यकीन था कि शनि की दशा से सड़क पर आया हूं तो इसी दशा में कुछ कमाल भी करुंगा। सो फिल्म से तौबा कतई नहीं की। पिता जी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश चलचित्र निगम के सहयोग से एक नयी फीचर फिल्म में जुट भी गए। फिल्म तो पूरी नहीं हुई,लेकिन रवीन्द्र वर्मा को अस्सी के दशक के उस बुरे दौर में उन्ही कथित पंडितों की अधकचरी भविष्यवाणी और आस्था ने ही जीवन में आगे बढ़ने का साहस दिया। मुझे नहीं मालूम कितने साल बाद और क्या करने से वर्मा जी की किस्मत चमकी,लेकिन बुरे वक्त का भविष्य हमेशा अच्छा होता है इस बात का अटूट विश्वास उन्हें उसी बैक्टीरिया ने कराया जिससे आनंद जी को बड़ी बीमारी होने का खतरा लगता है।
भविष्य में अच्छा तभी होता है जब बुरा दौर गुजरता है। रही बात किस्मत बताने की उसका दावा कोई नहीं कर सकता। ज्योतिष के जरिए महज संकेत मिलते हैं। ब्लॉग विचार व्यक्त करने का एक माध्यम है। लेकिन किसी को किसी के विचार से जीने की राह मिले तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। भले ही विचार सियासत और खेल से जुड़े क्यों न हो।

Friday, April 6, 2007

काल सर्प- महज एक खौफ


बहुत कम ज्योतिषी ही काल सर्प योग को हौवा नहीं बनाते । उन्ही में से एक हैं के एन राव । भारतीय विद्याभवन के ज्योतिष विभाग में सलाहकार राव को इस विषय में महारथ हासिल है। खास कर काल सर्प के बारे में तो उनके विचार ही अलग है। और उनकी अगर माने तो इस योग का व्यक्ति बिगड़ता ही नहीं बनता भी है। वह भी कई बार राजा की तरह। इस लिए जो लोग काल सर्प योग से भयभीत हैं वो डरने की बजाए इसे समझे तो शायद उन्हें कुछ तसल्ली हो सकती है कि सब खराब ही नहीं कुछ योग और बातें अच्छी भी होती है।लेकिन कई ऐसे भी ज्योतिषी हैं जो इस मसले पर अलग राय रखते हैं। कई ज्योतिष तो इसका सही जवाब भी नहीं दे पाते और कुछ इसके निदान के लिए त्रयम्बकेश्वर और उज्जैन तक भेजते हैं। जरुरत लेकिन वैज्ञानिक नजरिए से इसे समझने की है। तभी सटीक समाधान भी हो सकता है।काल सर्प योग का उल्लेख किसी भी प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। सच तो ये है कि कुछ ज्योतिषियों की ही ये देन है। राहू व केतु से बनने वाला या केतु राहू से बनने वाले दोष को काल सर्प दोष की संज्ञा दी गई है। इसको आधुनिक नजरिए से देखा जाए तो राहू उत्तरी ध्रुव का वो भाग है, जहां अंधकार है। वहीं केतु दक्षिणी ध्रुव का वो भाग है, जहां अंधकार है। पृथ्वी एक्सल पर घूमती है,जिसे उत्तरी ध्रुव व दक्षिण ध्रुव के कोने को माना है। पृथ्वी लगातार घूमती रहती है। इसलिए ऊपर से पड़ने वाली रोशनी हर जगह पड़ेगी। वहीं पृथ्वी के नीचे वाले ग्लोब से बल्ब की रोशनी डालें तो ऊपर वाले भाग पर रोशनी नहीं पड़ेगी।इस तरह ग्रहों को समझें। जिस भाग से गृहों की रोशनी पड़ेगी, वह उत्तरी ध्रुव है। इसे केतु व राहू के मध्य ग्रहों के होने से शुभ फल नहीं मिलते। कई पत्रिकाएं ऐसी होती हैं, जिनमें केतु मध्य राहू होने से लोगों को परेशानियां होती हैं और वह ऊंचाइयों पर पहुंचते-पहुंचते रहे जाते हैं। इसे ही काल सर्प दोष कहा जाता है।जानकारों के मुताबिक इसका सबसे सरल और सटीक अनुभूत उपाय रवि पुष्य नक्षत्र में विधि-विधान से तीन धातु सोना, आठ रत्ती तांबा और 16 रत्ती चांदी 12 रत्ती के हिसाब से लेकर तारों की गुत्थी की हुई अंगूठी अनामिका के नाम की रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े उस दिन सुबह 9 से 11 के बीच बनवाकर किसी भी रविवार को शुद्ध कर पहनी जाती है।सोना, पुखराज या गुरु की प्रतिनिधित्व धातु है, वहीं सूर्य मंगल के लिए तांबा-चांदी, चंद्र व शुक्र के लिए होती है। इन सबका एक सर्कल बनकर पूरे शरीर को प्रभावित करता है व जो भी बाधाएं आती हैं, इसके पहनने से दूर हो जाती हैं।