Thursday, November 22, 2007

कुंडली में गुरु का कमाल


धनु राशि में गुरु के आने की खबर ने खबरियां चैनलों में खूब जगह पाई। गुरु दरअसल ग्रह ही ऐसा है । जिसका आना और जाना किसी भी राशि में खासा मायने रखता है। ग्रहों का राजा होने के कारण और अपने प्रभाव के कारण भी । यही वजह है कि जिस जिस के लग्न या कुंडली में सही जगह बैठा उसके लिए वरदान ही साबित हुआ है। हालही में एक अखबार में सविता शर्मा का लेख पढ़ा जिसमें गुरु के साथ बुध और राहु के समीकरण का जिक्र किया था। जिसके कारण ही शतरंज के बादशाह विश्वनाथन आनंद को उसने महान खिलाड़ी बनाया।


आनंद का जन्मलग्न और जन्मराशि धनु है। इस कारण उनका व्यक्तित्व आकर्षक है। उनके लग्न में मन के कारक चंद्रमा व बुद्धि के कारक ग्रह बुध का अनूठा संगम है। उनकी बुद्धि को तेज व रचनात्मक बनाने में इन ग्रहों का बहुत योगदान है।
ज्योतिष के अनुसार धनु राशि के प्रतीक चिन्ह की व्याख्या ‘हाथ में धनुष लिए एक शिकारी’ के स्वरूप से की जाती है। तीव्र बुद्धि ने आनंद को अपने ध्येय के प्रति पूरी तरह से जागरूक रहने वाला बनाया। इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति उनकी कुंडली के लाभ भाव में स्थित है।
दशमेश व सप्तमेश बुध लग्न में षष्टेश व लाभेश शुक्र द्वादश में और द्वादश का स्वामी पराक्रम के तीसरे घर में होता हुआ जीवन में अच्छी स्थितियों का निर्माण कर रहा है। सूर्य एवं शुक्र व मंगल से हर्ष योग भी बनता है। कुंडली राशियोग, चक्रवर्ती राजयोग, तीव्र बुद्धि योग, देश-विदेश योग, गजकेसरी और पारिजात योग से ओतप्रोत है।
कुंभ का राहु तीसरे स्थान में मूल त्रिकोण राशि में बैठकर उन्हें आक्रामक खिलाड़ी बना रहा है। लग्न के स्वामी बृहस्पति की दृष्टि पंचम घर में पड़कर बुद्धिबल में तीव्रता प्रदान करती है। पंचम भाव और पंचमेश मंगल पर दृष्टि होने से दिमागी खेलों में पछाड़ने की क्षमता विद्यमान रहती है। शनि ग्रह नीच के परंतु चंद्रमा से पंचम होने के कारण त्रिकोण का फल देने में सक्षम है।
भाग्येश सूर्य विदेशों से ख्याति प्राप्त कराता है। शुक्र लाभेश और षष्टेश बनकर प्रतियोगिता के घर पर दृष्टि डाल रहा है। इस कारण आनंद कभी हार नहीं मानेंगे। भाग्येश सूर्य व लाभेश शुक्र की अंतर्दशा में १९८७ में आनंद ने विश्व जूनियर शतरंज चैंपियनशिप जीती। चंद्रमा की महादशा में १८ वर्ष की आयु में उन्होंने ‘ग्रैंड मास्टर’ की उपाधि पाई।
वर्तमान समय में मान-सम्मान का ग्रह राहु तीसरे घर में स्थित होकर आगामी १८ वर्षो तक लाभ दिलाता रहेगा। २९ सितंबर, २क्क्७ को राहु में गुरु और बुध की स्थिति ने उन्हें विश्व शतरंज चैंपियनशिप दिलाई। नवंबर,२00६ से अप्रैल, २00९ तक राहु में बृहस्पति की अंतरदशा उन्हें शतरंज के क्षेत्र में वर्चस्व दिलाने में सहायक सिद्ध होगी।
आनंद के जीवन में महादशाओं व गोचर के अंतराल की बड़ी अहम भूमिका रही है, जो वर्तमान व भविष्य में प्रतिद्वंद्वियों को हराने में उनके लिए सहायक सिद्ध होंगी। इनकी कुंडली में चंद्रमा से ग्यारहवां बृहस्पति होने के कारण जीवन में जीतने और सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने की इच्छा सदैव बनी रहेगी। उनकी कुंडली में मंगल व शनि का राशि परिवर्तन उनको आक्रामक खिलाड़ी बनाएगा।