सदी के महानयक के घर शादी तो निपट गई। लेकिन शादी से कुछ घंटे पहले ही जो ड्रामा हुआ वह भी कम फिल्मी नहीं था। जिस वक्त प्रतीक्षा में दूल्हा रुप की रानी के घर बारात लेकर जाने की तैयारी कर रहा था, बाहर हया रिज़वी उर्फ जाह्नवी कपूर प्यार का रोना ले कर बैठी थी। वह भी ऐसा जिसने देश के सभी न्यूज चैनलों को लाइव दिखाने पर मजबूर कर दिया। ( बेशक अखबारों की नज़र में टीआरपी के लिए) भले ही जाह्ववी का नाटक सुर्खियां बंटोरने के लिए हो, उसकी हरकतों से एक बात साफ थी कि वो मानसिक रुप से पूरी तरह फिट कतई नहीं है। हुआ भी यही, खुदकुशी की कोशिश में गिरफ्तारी के बाद छूटने के चंद घंटो बाद वो प्रतीक्षा जा पहुंची। लेकिन इससे पहले की वहां कोई और ड्रामा होता पहले से मौजूद पुलिस ने कोई खेल नहीं होने दिया।
खुद को अभिषेक की पत्नी बताने वाली जाह्ववी का सच हांलाकि जल्द सामने आ गया। और मनोचिकित्सकों ने तो यहां तक कह डाला कि इरोटोमेनिया के मरीज का ये पहला लक्षण है।
यहां इस किस्से का जिक्र इसलिए नहीं किया जा रहा कि ऐश और अभिषेक की शादी के लिए तमाम पूजा पाठ के बावजूद बखेड़ा क्यो खड़ा हो गया। या ये किसी मंगल दोष का पहला फल तो नहीं था। उस बखेड़े की खबर के साथ साथ एक खबर ये भी सामने आई की न्यूज चैनल आखिर चाहते क्या है ?
एक अखबार ने तो इसे खबर के नाम पर भद्दा मजाक बताते हुए यहां तक लिख डाला कि टीआरपी के नाम पर ये चैनल वाले जो करें सब कम है।
हैरत होती, ऐसा लिखने वालों पर और गाहे बगाहे टीआरपी के नाम पर ज्ञान बांटने वालों पर। क्योंकि खबरों का चयन और उसे दिखाने वाले टेलीविजन के पत्रकार किसी दूसरी दुनिया से नहीं आते बल्कि यही के हैं। या यूं कहे कि साठ फीसदी से ज्यादा अखबार की दुनिया के ही हैं। जाहिर है उन्हें भी इतनी समझ तो होगी ही कि खबरों का चयन कैसे हो और उसे कैसे परोसे। रही बात टीआरपी की तो सच यही है कि जो बिकता है वह दिखता है। चाहे टेलीविजन हो या अखबार। सिर्फ ज्ञान की बातें और सरकारी ख़बर कोई नहीं देखना चाहता। किसी भी टीवी मीडिया ग्रुप का भविष्य अब वही टीआरपी तय कर रहे हैं जिसे लेकर कुछ लोग हाय तौबा मचाते रहते हैं। एक दूसरे अखबार को इस बात पर हैरानी थी कि जूनियर बच्चन और ऐश्वर्या से जुड़ी खबरों तक तो ठीक, जाह्ववी के तलाकशुदा पति की दादी की बाइट लेने के लिए क्या मारा मारी ?
अब उन्हें कौन समझाए कि जिस खबरिया चैनलों पर कलम चला कर वो कालम भर रहे है फिर उसका भी क्या मतलब ? बहस इस पर नहीं होनी चाहिए कि कौन क्या लिख रहा है या कौन क्या दिखा रहा है। बहस इस पर होनी चाहिए कि कितनी बड़ी आबादी आज क्या देख रही है और क्या पढ़ना चाहती है। लेकिन ये ज्ञान पिलाने का काम कोई क्यों करें ?
खबरों की इतनी चीर फाड़ अगर होने लगे तो फिर इस बात को भी बताने की भला क्या जरुरत की विदाई से पहले ऐश्वर्या के मायके, ला-मेर में एक शानदार पार्टी दी गई और करीब दो सौ लोग इस पार्टी में पहुंचे। ये तो छोड़िए तमाम चैनलों ने ये तक जानने में ताकत झोक दी कि उस पार्टी में बिग बी के अलावा कौन कौन थे।
मामला मटुक नाथ का हो या किसी मूर्ति के दूध पीने का, खबर है तो दिखेगा ही, और चर्चा होगी तो अखबार भी छापेंगे ठीक वैसे ही जैसे ऐश और जाह्ववी की खबर भी चटकारे लेकर छपी।
खुद को अभिषेक की पत्नी बताने वाली जाह्ववी का सच हांलाकि जल्द सामने आ गया। और मनोचिकित्सकों ने तो यहां तक कह डाला कि इरोटोमेनिया के मरीज का ये पहला लक्षण है।
यहां इस किस्से का जिक्र इसलिए नहीं किया जा रहा कि ऐश और अभिषेक की शादी के लिए तमाम पूजा पाठ के बावजूद बखेड़ा क्यो खड़ा हो गया। या ये किसी मंगल दोष का पहला फल तो नहीं था। उस बखेड़े की खबर के साथ साथ एक खबर ये भी सामने आई की न्यूज चैनल आखिर चाहते क्या है ?
एक अखबार ने तो इसे खबर के नाम पर भद्दा मजाक बताते हुए यहां तक लिख डाला कि टीआरपी के नाम पर ये चैनल वाले जो करें सब कम है।
हैरत होती, ऐसा लिखने वालों पर और गाहे बगाहे टीआरपी के नाम पर ज्ञान बांटने वालों पर। क्योंकि खबरों का चयन और उसे दिखाने वाले टेलीविजन के पत्रकार किसी दूसरी दुनिया से नहीं आते बल्कि यही के हैं। या यूं कहे कि साठ फीसदी से ज्यादा अखबार की दुनिया के ही हैं। जाहिर है उन्हें भी इतनी समझ तो होगी ही कि खबरों का चयन कैसे हो और उसे कैसे परोसे। रही बात टीआरपी की तो सच यही है कि जो बिकता है वह दिखता है। चाहे टेलीविजन हो या अखबार। सिर्फ ज्ञान की बातें और सरकारी ख़बर कोई नहीं देखना चाहता। किसी भी टीवी मीडिया ग्रुप का भविष्य अब वही टीआरपी तय कर रहे हैं जिसे लेकर कुछ लोग हाय तौबा मचाते रहते हैं। एक दूसरे अखबार को इस बात पर हैरानी थी कि जूनियर बच्चन और ऐश्वर्या से जुड़ी खबरों तक तो ठीक, जाह्ववी के तलाकशुदा पति की दादी की बाइट लेने के लिए क्या मारा मारी ?
अब उन्हें कौन समझाए कि जिस खबरिया चैनलों पर कलम चला कर वो कालम भर रहे है फिर उसका भी क्या मतलब ? बहस इस पर नहीं होनी चाहिए कि कौन क्या लिख रहा है या कौन क्या दिखा रहा है। बहस इस पर होनी चाहिए कि कितनी बड़ी आबादी आज क्या देख रही है और क्या पढ़ना चाहती है। लेकिन ये ज्ञान पिलाने का काम कोई क्यों करें ?
खबरों की इतनी चीर फाड़ अगर होने लगे तो फिर इस बात को भी बताने की भला क्या जरुरत की विदाई से पहले ऐश्वर्या के मायके, ला-मेर में एक शानदार पार्टी दी गई और करीब दो सौ लोग इस पार्टी में पहुंचे। ये तो छोड़िए तमाम चैनलों ने ये तक जानने में ताकत झोक दी कि उस पार्टी में बिग बी के अलावा कौन कौन थे।
मामला मटुक नाथ का हो या किसी मूर्ति के दूध पीने का, खबर है तो दिखेगा ही, और चर्चा होगी तो अखबार भी छापेंगे ठीक वैसे ही जैसे ऐश और जाह्ववी की खबर भी चटकारे लेकर छपी।
3 comments:
समझ में नहीं आता मीडिया को कोई और खबर नहीं दिखती। तमाम चीजे रोज होती है। लेकिन पीछे पड़ेंगे उसके जिसका आम आदमी से कोई लेना देना ही नहीं है। प्रतीक्षा के सामने जब सुरक्षाकर्मी से पिट जाते है तो चिल्लाने लगते है। किसने कहां था किसी के घर में झाको । जाह्नवी कौन थी किसकी दिलचस्पी है ये जानने में? टीआरपी की होड़ में बाकी बीबीसी या सीएनएन जैसे चैनल तो ऐसी खबरें कभी नहीं दिखाते। प्रदीप सरकार, कोलकाता
Sorry I donot have hindi fonts on my computer so I have to write in English.
Leave it on viewers. Different channels has covered this marriage in their own way as per their target viewers. I appreciate the CNN-IBN presentaion of this 'Shaadi No.-1' in a light comedy manner.This news was worth covering like this for 2 consecutive days. Some channels covered this topic as a News as they must have thought according to their target Viewers. So leave this debate on Viewers as they have Remote Control in their hand to switch channels and watch News as per their choice.
--Umesh, Kolkata(uksimp@hotmail.com)
नीलेश मिश्र की मैने किताब पढ़ी है वाकई लाजबाब लिखते हैं। यदि हिंदी में भी अच्छा लिखते हैं तो उस भाषा से इतना परहेज क्यों? कहीं बेस्ट सेलर की सीढी से उतरने का खतरा तो नहीं है। उन्हें मेरी सलाह है कि हिन्दी में भी लिखे तो उसे भी पढने और समझने वाले ढेरों पाठक उन्हें मिलेंगे।
अजय आहूजा,दिल्ली
Post a Comment