Sunday, April 8, 2007

ज्योतिष का बैक्टीरिया !

पिछले सप्ताह दो खत मिले और दोनों ही दिलचस्प थे। उनमे से एक किसने लिखा नहीं मालूम लेकिन एक खत मेरे पुराने मित्र आनंद कुमार का है जो पेशे से डॉक्टर हैं। पहले खत में लिखा है कि भविष्य जैसे ब्लॉग में भविष्य के बारे में कम सियासत और खेल पर विचार ज्यादा पढ़ने को मिलते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि इस ब्लॉग को खोलते ही हमे राहू काल और तिथि के अलावा ज्योतिष से जुड़ी बाकी जानकारी भी मिल जाए। दूसरे खत में आनंद ने ज्योतिष की तुलना उस बैक्टीरिया से की है जिसका वक्त रहते इलाज न होने पर बड़ी बीमारी हो सकती है।
आनंद की बात से कुछ हद तक सहमत हूं। ये विषय ही कुछ ऐसा है। जिसमें बड़े बड़े नामी गिरामी लोगों की बातें फुस्स होते मैने क्या सभी ने देखी होगी। सवाल है किसी भी चीज के पीछे आंख बंद करके चलने को कौन कह रहा है?
मुझे याद है बचपन में मेरे पिता जी के एक मित्र जो वॉलीवुड से जुड़े थे अचानक मुफलिसी के दौर में आ गए थे। पूना फिल्म इंस्टीट्ट के टॉपर रवीन्द्र वर्मा आशा पारीख के बैचमेट थे और अपने जमाने में कई फिल्मों में संगीत दिया। लेकिन बलराज साहनी को लेकर फिल्म प्रायश्चित बनाना उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। फिल्म तो फ्लॉप हुई ही नौबत सड़क पर आने की आ गई। मरता क्या न करता। जिसने जो ऊपाय बताए वर्मा जी ने सब किया। किसी ने हनुमान मंदिर सौ बार दर्शन का रास्ता सुझाया तो किसी ने उस दौर में भी अंगूठी और ताबीज पहनने की राय दे डाली। पत्नी मामूली टीचर थी। तनख्वाह के नाम पर जो मिलता घर खर्च में चला जाता। परिवार तो बड़ा नहीं था एक बेटी थी । लेकिन तंग हाल में भी मैने कभी उनका धैर्य टूटते नहीं देखा। वजह थी ग्रहों पर उनका यकीन । उन्हें यकीन था कि शनि की दशा से सड़क पर आया हूं तो इसी दशा में कुछ कमाल भी करुंगा। सो फिल्म से तौबा कतई नहीं की। पिता जी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश चलचित्र निगम के सहयोग से एक नयी फीचर फिल्म में जुट भी गए। फिल्म तो पूरी नहीं हुई,लेकिन रवीन्द्र वर्मा को अस्सी के दशक के उस बुरे दौर में उन्ही कथित पंडितों की अधकचरी भविष्यवाणी और आस्था ने ही जीवन में आगे बढ़ने का साहस दिया। मुझे नहीं मालूम कितने साल बाद और क्या करने से वर्मा जी की किस्मत चमकी,लेकिन बुरे वक्त का भविष्य हमेशा अच्छा होता है इस बात का अटूट विश्वास उन्हें उसी बैक्टीरिया ने कराया जिससे आनंद जी को बड़ी बीमारी होने का खतरा लगता है।
भविष्य में अच्छा तभी होता है जब बुरा दौर गुजरता है। रही बात किस्मत बताने की उसका दावा कोई नहीं कर सकता। ज्योतिष के जरिए महज संकेत मिलते हैं। ब्लॉग विचार व्यक्त करने का एक माध्यम है। लेकिन किसी को किसी के विचार से जीने की राह मिले तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। भले ही विचार सियासत और खेल से जुड़े क्यों न हो।

5 comments:

Anonymous said...

भविष्य में किसके साथ क्या हो कुछ नहीं कहा जा सकता। वर्मा जी जैसे कई शख्स को मैं जानती हूं जिन्होंने बुरे हालात का सामना ये सोच कर किया कि आने वाला कल अच्छा होगा। संजना भागमल

Anonymous said...

सर्वेश भाई जब नाव डूबती है तो हर किसी को भगवान याद आते हैं। आनंद जिस बैक्टीरिया की शायद बात कर रहे हैं उनका आशय अंध विश्वास से है। अगर ऐसा है तो उन्हें कहना चाहूंगा कि देश में जितने धार्मिक स्थल है सब विश्वास पर ही बने ही । अगर आस्था नहीं होती तो नहीं होते। इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। वर्मा जी से कभी नहीं मिला हूं लेकिन उनके बारे में सुना जरुर है। लेकिन अच्छा होता अगर इस बात का भी आपने खुलासा किया होता कि वर्मा जी ने आखिरकार कौन सी अंगूठी पहनी थी और कितने दिनों बाद उसका फायदा हुआ। क्योंकि मैं खुद इस पचड़े में काफी कुछ गवां चुका हूं।

Anonymous said...

सर्वेश भाई जब नाव डूबती है तो हर किसी को भगवान याद आते हैं। आनंद जिस बैक्टीरिया की शायद बात कर रहे हैं उनका आशय अंध विश्वास से है। अगर ऐसा है तो उन्हें कहना चाहूंगा कि देश में जितने धार्मिक स्थल है सब विश्वास पर ही बने ही । अगर आस्था नहीं होती तो नहीं होते। इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। वर्मा जी से कभी नहीं मिला हूं लेकिन उनके बारे में सुना जरुर है। लेकिन अच्छा होता अगर इस बात का भी आपने खुलासा किया होता कि वर्मा जी ने आखिरकार कौन सी अंगूठी पहनी थी और कितने दिनों बाद उसका फायदा हुआ। क्योंकि मैं खुद इस पचड़े में काफी कुछ गवां चुका हूं।

Anonymous said...

ये कहना काफी मुश्किल है कि किसी पत्थर या ताबीज के पहनने से किसी की किस्मत बदल सकती है। ऐसा होता तो हर ताकतवर आदमी सारे ग्रहों को अपने मुताबिक कर लेता। आर्थिक रुप से कमजोर आदमी के लिए भले महंगे पत्थर पहनना मुमकिन न हो, जो सक्षम है उनके लिए क्या दिक्कत है। ऐसा ही होता तो गुलशन कुमार जैसे धार्मिक आदमी को मंदिर के बाहर गोली नहीं लगती। वर्मा जी की किस्मत उनके अपने कर्मो से बदली भले कोई माने या नहीं।

महेश श्रीवास्तव, जबलपुर

Anonymous said...

किस्मत से बड़ा कोई नहीं है। चाहे बॉलीवुड हो या सियासत। विवेक ओबराय या सलमान ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऐश के साथ फेरे लगाने का उनका सपना सपना ही रहेगा, और बाजी अभिषेक के हाथ लगेगी। ठीक ऐसा ही कपूर परिवार के साथ हुआ। करिशमा की सगाई अभिषेक से हुई लेकिन फेरे किसी और से लिए। क्या कहेंगे। जीवन में यही सत्य है बाकी बकवास कोई माने या नहीं। कभी कल्याण सिंह या उमा भारती ने सोचा था कि जिस बीजेपी का झंडा लेकर वो लंबे वक्त तक राजनीति की रोटियां सकेंते रहे वहीं से बाहर का रास्ता  दिखा दिया जाएगा। कल्याण की किस्मत करवट भी ली। लेकिन उमा बेचारी ही रहीं। न किसी की पूजा काम आई न ताबीज। कर्म की दुहाई देने वालों को मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि कभी वक्त मिले तो अपने बारे में भी सोचे की अब तक के अपने जीवन में उन्हें क्या मेहनत से मिला और क्या किस्मत से । तब मालूम हो जाएगा कि मेहनत का फल किस्मत का फल ।